गुनाह


गुनाह इतना भी न कर -ए- दिल की तू किसी का मुजरिम हो जाए
यहाँ हर कोई मुंसिफ नहीं होता जो तेरे हक़ में फैसला सुनाये
(hover on blue words for their meanings........)







Posted by: Vivekanand Joshi


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