A trans-creation in hindi by me for One of My Favorite poems written by My Dear friend Indrajeet Jain on his blog
Original -Maison to bureau (Read here) by Indrajeet Jain
Trans creation -सपना सुहाना था by Vivekanand Joshi
कल रात एक सपना सुहाना था
अगली सुबह कुछ अलग आना था
सफ़र-ए-मंज़िल की खातिर
छोड़ना मुझे अपना
ठिकाना पुराना था
अपने मकान को अलविदा
अब मुझे कहना था
चलना था जानिब-ए-मंज़िल मगर क्या बताऊँ
कैसा अजीब था वो अहसास
कदम बढ़ते ही मेरे आसमान ने
नाखुशी से बुलाया मुझे और
मेरी खुदगर्ज़ी ने बहुत रुलाया उसे ना जाने क्यूँ उस दिन
ज़मीन का दामन भिगाना था,
क्या सपना वो सुहाना था ?
बस इसी का जवाब पाना था
बढ़ते बढ़ते उदासी से निकलते बीच सड़क पे, मेरी आँखो ने किसी बच्चे को भीगते थिरकते देखा
मेरी ना समझी ने उस से सवाल कर डाला जिस पर उसका जवाब की जैसे उसके उम्र के डब्बे मे बस ये एक पल है और उसका मक़सद इसे ख़ास बनाना था
मुझे लगा मेरा सपना बेईमाना था आगे बढ़ते ही मुझे एक साया भागता नज़र आया गिरती बूँदो से बचने को शायद उसकी
रफ़्तार कम थी
मेरे पूछने पर उसने कहा की उसकी ज़िंदगी पहले से ही नम थी उसकी बूझी आँखो ने मेरी उमीद को तोड़ दिया और मैने अपना आस का पंछी वहीँ पर छोड़ दिया
मेरा सफ़र अंजाम पर था
मेने अपने तजुर्बे को समेटा
जैसे किस्मत को मुझे बताना था की हाँ वो सपना सुहाना था
हर पल सुहाना है
आने वाला कल सुहाना है
गुज़रा कल सुहाना था
ये जो पल है
इस पल मे कुच्छ करना है ज़िंदगी का हर पल भरना है चाहत यकीन खुद पे कराना था हाँ वो सपना सुहाना था
हाँ वो सपना.................
Original -Maison to bureau (Read here) by Indrajeet Jain
Trans creation -सपना सुहाना था by Vivekanand Joshi
कल रात एक सपना सुहाना था
अगली सुबह कुछ अलग आना था
सफ़र-ए-मंज़िल की खातिर
छोड़ना मुझे अपना
ठिकाना पुराना था
अपने मकान को अलविदा
अब मुझे कहना था
चलना था जानिब-ए-मंज़िल मगर क्या बताऊँ
कैसा अजीब था वो अहसास
कदम बढ़ते ही मेरे आसमान ने
नाखुशी से बुलाया मुझे और
मेरी खुदगर्ज़ी ने बहुत रुलाया उसे ना जाने क्यूँ उस दिन
ज़मीन का दामन भिगाना था,
क्या सपना वो सुहाना था ?
बस इसी का जवाब पाना था
बढ़ते बढ़ते उदासी से निकलते बीच सड़क पे, मेरी आँखो ने किसी बच्चे को भीगते थिरकते देखा
मेरी ना समझी ने उस से सवाल कर डाला जिस पर उसका जवाब की जैसे उसके उम्र के डब्बे मे बस ये एक पल है और उसका मक़सद इसे ख़ास बनाना था
मुझे लगा मेरा सपना बेईमाना था आगे बढ़ते ही मुझे एक साया भागता नज़र आया गिरती बूँदो से बचने को शायद उसकी
रफ़्तार कम थी
मेरे पूछने पर उसने कहा की उसकी ज़िंदगी पहले से ही नम थी उसकी बूझी आँखो ने मेरी उमीद को तोड़ दिया और मैने अपना आस का पंछी वहीँ पर छोड़ दिया
मेरा सफ़र अंजाम पर था
मेने अपने तजुर्बे को समेटा
जैसे किस्मत को मुझे बताना था की हाँ वो सपना सुहाना था
हर पल सुहाना है
आने वाला कल सुहाना है
गुज़रा कल सुहाना था
ये जो पल है
इस पल मे कुच्छ करना है ज़िंदगी का हर पल भरना है चाहत यकीन खुद पे कराना था हाँ वो सपना सुहाना था
हाँ वो सपना.................
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